I Dont Know Why Is It So Tough To Let Go Someone Whom You Could Not Hold Ever.
Thursday, 22 March 2012
Tuesday, 21 February 2012
इक आह...
कभी सोचती हूँ कुछ हो ऐसा
जो तुझे ये एहसास कराये
चोट जब देता है कोई
कितना दर्द दिल ये पाए
आकर किसी के जीवन में
इक पल को खुशियाँ बिखराना
और उसके मन में
अरमानो के दीप जलाना
आँखों में हर पल किसी के
प्यारा सा इक ख्वाब सजाना
हर पल कुछ खास हो तुम
बस ये ही एहसास कराना
खुद ही मीठे सपने दिखा के
नींद से कैसे जगा दे कोई
प्यार तुम्ही से है ये कह कर
कैसे मुंह मोड़ ले कोई
इक पल में सब कुछ भुला कर
दूर कैसे चला जाए कोई
जाने के बाद फिर कभी भी
इक बार भी याद करे ना कोई
पागल तो है मन मेरा जो
हर इक पल में तुझको सोचे
अरमानों की सेज सजा के
तेरे आने की राहें ताके
कहीं जानती हूँ मै कि
तू अब ना है आने वाला
ये तो बस इक बहाना है
पागल मन बहलाने वाला
कभी सोचती हूँ मै ये कि
इस तपिश से तू भी गुजरे
तू भी जाने हाल जिया का
जब कोई इसे रौंद के गुजरे!!!
जो तुझे ये एहसास कराये
चोट जब देता है कोई
कितना दर्द दिल ये पाए
आकर किसी के जीवन में
इक पल को खुशियाँ बिखराना
और उसके मन में
अरमानो के दीप जलाना
आँखों में हर पल किसी के
प्यारा सा इक ख्वाब सजाना
हर पल कुछ खास हो तुम
बस ये ही एहसास कराना
खुद ही मीठे सपने दिखा के
नींद से कैसे जगा दे कोई
प्यार तुम्ही से है ये कह कर
कैसे मुंह मोड़ ले कोई
इक पल में सब कुछ भुला कर
दूर कैसे चला जाए कोई
जाने के बाद फिर कभी भी
इक बार भी याद करे ना कोई
पागल तो है मन मेरा जो
हर इक पल में तुझको सोचे
अरमानों की सेज सजा के
तेरे आने की राहें ताके
कहीं जानती हूँ मै कि
तू अब ना है आने वाला
ये तो बस इक बहाना है
पागल मन बहलाने वाला
कभी सोचती हूँ मै ये कि
इस तपिश से तू भी गुजरे
तू भी जाने हाल जिया का
जब कोई इसे रौंद के गुजरे!!!
Saturday, 4 February 2012
चलो... आज को जी लें...!!!!
कभी कभी यूँ सोचती हूँ कि...
क्या अच्छा है???
वो कल जो बीत गया...
या वो कल जो आने वाला है...??
वो कल जो बीत गया.. कितना कुछ है उसमें...
खुशियाँ - ग़म, हार - जीत, कुछ यादें कुछ अपने...
और वो सपने जो हकीक़त बन गए...
और हिस्सा है मेरे आज का...
और वो भी जिन्हें कोई मंजिल ना मिली..
पर हाँ... अफ़सोस करने के लिए वो भी जरूरी है..
कितने ही लोग जो मिले.. और बिछड़ गए...
कुछ छूट गए कहीं... और कुछ...
शामिल हो गए मेरे आज में...
मुड़ के देखो तो लगता है कि...
एक पूरी जिंदगी ही छूट गयी है पीछे कहीं..
ग़म है उन लम्हों के बीत जाने का....
फिर खो जाती हूँ मैं आने वाले कल खयालो में...
वो कल जो है बिलकुल अनजान.. अजनबी सा..
कुछ भी तो नहीं पता है उसके बारे में...
पर उम्मीदों, उमंगो और ख्वाबों का तो
पूरा नया जहाँ है वो...
पर अक्सर ही इसमें कुछ ऐसा छुपा होता है जो...
हमारी पूरी दुनिया ही बदल देता है..
या तो कुछ आबाद कर जाता है..
या फिर बर्बाद..
तो फिर अच्छा क्या है..????
अब तो यूँ लगता है.. ये आज ही शायद सबसे अच्छा है..
क्यूकि... इसमें जो कुछ भी.. होगा..
वो मेरी वजह से होगा... अच्छा या बुरा..
उसका जिम्मा मेरा ही होगा...
और इस आज में ना तो अफ़सोस है...
ना ही झूठी उम्मीदें...
ना ही सपनो के पूरे होने ना होने कि शर्तें..
बस ये एक आज ही तो हे.. जो कभी मरता नहीं..
और हमेशा... नया और ताज़ा रहता है..
तो फिर क्यूँ ना इस आज को ही जी लिया जाए....
Wednesday, 11 January 2012
I Hate Waiting For You
I hate waiting for you
I just hate it...
When I log into Gtalk..
I type first letter of your ID...(Cross Fingers)
Just to check....
If today I will see you online..
(If you have not blocked me OR If you are not on invisible status)
And If I can have a chat with you
But as always... it shows.. you are offline...
I keep checking it..
every now and then...
Somtimes-
I wish if "telepathy" would work out...
(I refer any connection b/w you & me which could tell you my status of Mind OR Heart)
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But I do have doubt... if you will notice it...
(P.S.: because I know you so well :( )
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'
But... I would love to be wrong....
(Only for You) :P :D
Monday, 9 January 2012
"माँ"
माँ शब्द कितना छोटा सा है
पर इसके मायने कितने बड़े
माँ जो खुद सब कुछ सहती है
पर बचाती है हमें हर दुःख से
डट कर खड़ी हो जाती है उस राह में
जहाँ से मुश्किल कोई भी आती है
हमारा हर संकट हर दुःख
हमसे पहले माँ से टकराता है और
हर बार हमें छुए बिना ही
माँ से डरकर चला जाता है
जब भी सपने में कुछ भी डरावना दिखता है
तो आँख खुलते ही सिर्फ माँ ही याद आती है
जाते ही माँ के पास और छुपते ही माँ के आँचल में
हर डर दूर हो जाता है
माँ शब्द है कितना विस्तृत
इसका परिमाप तो नहीं वर्णित
पर इतना जरूर कह सकती हूँ कि
भगवान भी माँ का ही रूप होगा
शायद इसीलिए हर अबोध जो
भगवान का रूप होता है
सबसे पहला शब्द सिर्फ "माँ" बोलता है!!!
पर इसके मायने कितने बड़े
माँ जो खुद सब कुछ सहती है
पर बचाती है हमें हर दुःख से
डट कर खड़ी हो जाती है उस राह में
जहाँ से मुश्किल कोई भी आती है
हमारा हर संकट हर दुःख
हमसे पहले माँ से टकराता है और
हर बार हमें छुए बिना ही
माँ से डरकर चला जाता है
जब भी सपने में कुछ भी डरावना दिखता है
तो आँख खुलते ही सिर्फ माँ ही याद आती है
जाते ही माँ के पास और छुपते ही माँ के आँचल में
हर डर दूर हो जाता है
माँ शब्द है कितना विस्तृत
इसका परिमाप तो नहीं वर्णित
पर इतना जरूर कह सकती हूँ कि
भगवान भी माँ का ही रूप होगा
शायद इसीलिए हर अबोध जो
भगवान का रूप होता है
सबसे पहला शब्द सिर्फ "माँ" बोलता है!!!
Wednesday, 14 September 2011
:)
Life is just life. People around you.. make it beautiful.... Or Weird... :) ;)
And mine is combo... Bczz I have very good friends, well wishers & lovely People in it... bt yeahh at the same time some horrible.. ppl as well..... whom I dnt want to throw out of my life.... bczz they make me realize the worth of good ppl in my life.... :) ;)
Monday, 29 August 2011
तुम्हारा एहसास...
कुछ यूँ हुआ था उस रोज़ ...
बैठी थी मैं अपने कमरे में
और तुम आ गए.. ना कोई दस्तक..
ना ही कोई आहट... चुप-चाप दबे पाँव आये..
और हौले से बैठ गए पैताने पे...
तुम बिल्कुल सामने थे मेरे...
उस रोज़ पहली बार थामा था तुमने... हाथ मेरा...
बस मैं खो गयी उस एक स्पर्श में...
कुछ न कहा मैंने ... बस नज़रें झुकाए बैठी रही ..
पर शायद कुछ कहा था तुमने.. जिसे मैं सुन न सकी...
क्या करती मैं..??? तुम्हारे छूने भर से...
उस ठहरे हुए पानी में अजीब सी तरंगें उठ गयी..
यूँ लगा कि बस ये वक़्त यहीं थम गया है ... और साथ ही
दिल कि धडकनें भी...
क्या करती मैं..??? तुम्हारे छूने भर से...
उस ठहरे हुए पानी में अजीब सी तरंगें उठ गयी..
यूँ लगा कि बस ये वक़्त यहीं थम गया है ... और साथ ही
दिल कि धडकनें भी...
बस वो इक पल था जब मैं खुद से मिली
मैंने जाना खुद को और उन् एहसासों को
अजनबी हो तुम, कुछ जाने पहचाने से
मुझसे दूर पर दिल के बेहद करीब.....
अचानक से कुछ टूटने की आवाज़ से चौंक गई मैं...
देखा... हाथ लगने से.. पास की मेज़ पे रखा..
कांच का गिलास टूट गया था.. तुम न थे वहां...
और सारे एहसास कांच टुकड़ो के रूप में बिखरे पड़े थे फर्श पर..
और वही मैं थी होस्टल के कमरे की खिड़की से...
चाँद को निहारती.. भ्रम था मेरा कि मैंने तुमको देखा है...
लुढ़क आये दो आंसू गाल पे..
चाँद को निहारती.. भ्रम था मेरा कि मैंने तुमको देखा है...
लुढ़क आये दो आंसू गाल पे..
फिर बैठ गयी मैं उन एहसासों को पन्नो पर उकेरने....
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